Sunday, June 15, 2025
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चिल्ला गांव में कब्रिस्तान और श्मशान घाट पर चला बुलडोजर, प्रशासन ने अदालत के आदेश का दिया हवाला..

प्रशासन की कार्रवाई से मचा हड़कंप.

नई दिल्ली, 20 मई । पूर्वी दिल्ली के चिल्ला गांव में मंगलवार देर रात दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर हुई प्रशासनिक कार्रवाई ने एक बार फिर राजधानी में धार्मिक स्थलों को लेकर जारी बहस को नया आयाम दे दिया है। दिल्ली और नोएडा को जोड़ने वाली मुख्य सड़क के किनारे स्थित वर्षों पुराने कब्रिस्तान और श्मशान घाट पर बुलडोजर चलाकर अवैध निर्माणों को हटाया गया। यह कार्रवाई दिल्ली पुलिस, लोक निर्माण विभाग (पीडब्लूडी) और नगर निगम की संयुक्त टीम द्वारा की गई।रात के अंधेरे में शुरू हुई  सूत्रों के अनुसार, दिल्ली उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक मार्ग को अतिक्रमण से मुक्त करने का आदेश दिया था, जिसके अनुपालन में यह कार्रवाई की गई। प्रशासन ने स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए देर रात लगभग 2 बजे कार्यवाही शुरू की, ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से बचा जा सके। जैसे ही स्थानीय लोगों को इसकी जानकारी मिली, वे बड़ी संख्या में कब्रिस्तान और श्मशान घाट की ओर दौड़ पड़े। देखते ही देखते दोनों समुदायों के लोग इकट्ठा हो गए और विरोध शुरू हो गया। क्षेत्रीय विधायक रविकांत और पार्षद संजीव सिंह भी मौके पर पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया।प्रशासन और जनता आमने-सामने प्रशासन का कहना है कि यह पूरी कार्रवाई न्यायालय के निर्देशानुसार की जा रही थी और स्थानीय जनता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना उनका उद्देश्य नहीं था। अधिकारियों के अनुसार, कई बार नोटिस भेजे गए थे, लेकिन कोई समाधान न निकलने के कारण आखिरकार अदालत के आदेशों का पालन करना आवश्यक हो गया।हालांकि स्थानीय लोगों ने इस कार्रवाई को लेकर तीव्र नाराजगी जाहिर की है। उनका कहना है कि जिस भूमि पर यह कब्रिस्तान और श्मशान घाट स्थित था, उसका उपयोग वर्षों से किया जा रहा था और यह उनके धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। एक स्थानीय नागरिक ने कहा, “यह न केवल हमारे पूर्वजों का विश्राम स्थल है, बल्कि हमारी आस्था और परंपरा का प्रतीक भी है। आधी रात को बुलडोजर चलाना न केवल अमानवीय है, बल्कि संविधान के मूल्यों का भी उल्लंघन है।”तनाव के बीच शांति बनी रही स्थिति को बिगड़ने से रोकने के लिए प्रशासन ने त्वरित रूप से अतिरिक्त पुलिस बल बुलाया। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने स्वयं मौके पर डेरा डाला और लोगों को समझाने का प्रयास किया। लगभग पूरी रात लोगों की भीड़ वहां डटी रही, लेकिन किसी बड़े टकराव की खबर नहीं आई।प्रशासन की सतर्कता और संयम का ही परिणाम था कि इतनी संवेदनशील कार्रवाई भी बिना किसी हिंसा के पूरी हो सकी। सुबह करीब 5 बजे कार्रवाई समाप्त हुई, जिसमें मशीनों की सहायता से कब्रिस्तान और श्मशान घाट के कुछ हिस्सों को हटाया गया और रास्ते को साफ किया गया।सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं इस कार्रवाई के बाद क्षेत्र में राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है। कुछ राजनीतिक दलों ने इस कार्यवाही को “एकतरफा” बताया और प्रशासन पर धार्मिक स्थलों के प्रति असंवेदनशील होने का आरोप लगाया। वहीं, सामाजिक संगठनों ने भी इस कार्रवाई को लेकर प्रशासन से जवाबदेही की मांग की है।हालांकि कुछ प्रबुद्ध नागरिकों का मानना है कि जब न्यायालय द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए जाते हैं, तो प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वह कानून का पालन कर शांतिपूर्ण ढंग से कार्रवाई करे। साथ ही समाज का भी यह कर्तव्य है कि वह कानून व्यवस्था बनाए रखे और विरोध दर्ज कराने के लिए लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण रास्तों का चयन करे।एक स्थानीय निवासी ने  कहा, “यह न सिर्फ कब्रिस्तान बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक परंपराओं पर हमला है। बिना किसी पूर्व सूचना के आधी रात को ऐसी कार्रवाई करना लोकतांत्रिक व्यवस्था का अपमान है।स्थानीय लोगों का कहना है कि पूर्वी दिल्ली का चिल्ला गाँव और न्यू अशोक नगर क्षेत्र उत्तर प्रदेश के नोएडा से सटा हुआ है। यहां की भूमि का उपयोग क्षेत्रवासी वर्षों से कब्रिस्तान और श्मशान घाट के रूप में करते आ रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) इस भूमि का स्वामी कैसे बन गया। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि जहां भी कोई खाली ज़मीन दिखाई देती है, वहां डीडीए अपना बोर्ड लगाकर उसे सरकारी भूमि घोषित कर देता है।उनका कहना है कि चूंकि कब्रिस्तान और श्मशान घाट में आवासीय निर्माण नहीं होता, इसलिए अब डीडीए ने इन धार्मिक स्थलों को भी अतिक्रमण बताकर हटाना शुरू कर दिया है। कुछ लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि जब देश की अदालतें आस्था के नाम पर फैसले दे सकती हैं, तो ऐसे स्थलों पर कार्रवाई क्यों, जहां वर्षों से उनके पूर्वजों और परिजनों को दफनाया या अंतिम संस्कार किया गया है।डीडीए पर सवाल स्थानीय नागरिकों ने यह भी सवाल उठाया है कि जब वर्षों से यह भूमि अंतिम संस्कार और दफनाने के लिए उपयोग में लाई जा रही थी, तो अब दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) कैसे इसका मालिक बन बैठा? एक व्यक्ति ने कहा, “जहां भी खुली जमीन दिखती है, डीडीए बोर्ड लगा देता है। अब श्मशान और कब्रिस्तान पर भी नजर है।”राजनीतिक रंग पकड़ता मामला इस घटना ने राजनीतिक रूप भी ले लिया है। स्थानीय विधायक और पार्षदों ने कार्रवाई पर ऐतराज जताते हुए उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। कई राजनीतिक दलों ने इसे “एकतरफा” कार्रवाई बताते हुए सवाल खड़े किए हैं।सांस्कृतिक विरासत पर संकटन्यू अशोक नगर की यह कार्रवाई केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि दिल्ली की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को लेकर गहरे सवाल भी खड़े करती है। आने वाले दिनों में यह विवाद और गहराने की आशंका है। जनता और प्रशासन के बीच टकराव बढ़ सकता है।

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