Saturday, December 6, 2025
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नए सीजेआई गवई ने अनुच्छेद 370, बलात्कार, बुलडोजर न्याय जैसे मामलों में ऐतिहासिक फैसले सुनाए

नई दिल्ली, 14 मई । भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश और देश के पहले बौद्ध

न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने न्यायिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण

भूमिका निभाते हुए लगभग 300 फैसले लिखे हैं, जिनमें संवैधानिक मुद्दों एवं स्वतंत्रता संबंधी तथा

कार्यपालिका के ‘‘बुलडोजर न्याय’’ के खिलाफ कई ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं।

न्यायमूर्ति गवई न्यायमूर्ति के जी बालाकृष्णन के बाद भारतीय न्यायपालिका का नेतृत्व करने वाले

दूसरे दलित प्रधान न्यायाधीश हैं।

न्यायमूर्ति गवई (64) ने बुधवार को देश के 52वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। उन्हें

राष्ट्रपति भवन के गणतंत्र मंडप में एक संक्षिप्त समारोह के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ

दिलाई। उन्होंने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली है जो 65 वर्ष की आयु होने पर मंगलवार को

सेवानिवृत्त हुए। महाराष्ट्र के अमरावती में 24 नवंबर 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई को 24 मई 2019 को

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। उनका कार्यकाल छह महीने से

अधिक समय का होगा और वह 23 नवंबर तक पद पर रहेंगे।

साधारण पृष्ठभूमि से उठकर देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचने वाले न्यायमूर्ति गवई महाराष्ट्र

के अमरावती जिले के एक गांव से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता आर एस गवई ने ‘रिपब्लिकन पार्टी

ऑफ इंडिया’ (गवई) की स्थापना की थी।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 24 मई 2019 को पदोन्नत किए गए न्यायमूर्ति गवई

उन संविधान पीठों का हिस्सा थे, जिन्होंने अनुच्छेद 370, चुनावी बॉण्ड और 1,000 रुपये एवं 500

रुपये के नोट को अमान्य घोषित किए जाने सहित कई महत्वपूर्ण मामलों पर फैसले सुनाए।

न्यायमूर्ति गवई की अगुवाई वाली पीठ ने ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय की इस टिप्पणी पर रोक

लगाई थी कि किसी महिला के स्तनों को पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा खींचना बलात्कार का

प्रयास नहीं माना जाएगा। उन्होंने अदालत की इस टिप्पणी पर कहा था कि यह पूरी तरह से

‘‘असंवेदनशीलता’’ और ‘‘अमानवीय दृष्टिकोण’’ को दर्शाती है।

पिछले छह वर्ष में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति

गवई संवैधानिक और प्रशासनिक कानून, दीवानी और फौजदारी कानून, वाणिज्यिक विवाद,

मध्यस्थता कानून और पर्यावरण कानून सहित विभिन्न विषयों से संबंधित मामलों की सुनवाई करने

वाली लगभग 700 पीठों का हिस्सा रहे।

उन्होंने लगभग 300 फैसले लिखे, जिनमें कानून के शासन को कायम रखने तथा नागरिकों के

मौलिक, मानवीय और कानूनी अधिकारों की रक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों संबंधी संविधान पीठ के

निर्णय भी शामिल हैं।

प्रधान न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति गवई को शीर्ष अदालत में लंबित 81,000 से अधिक मामलों

से लेकर अदालतों में खाली पड़े पदों जैसे कई मुद्दों से निपटना होगा।

न्यायिक संदर्भ में वह बहुचर्चित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने से जुड़े

विवादास्पद मुद्दे से निपटेंगे।

प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ लेने से कुछ दिन पहले न्यायमूर्ति गवई ने यहां अपने आवास पर

पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि संविधान सर्वोच्च है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया

कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई कार्यभार नहीं संभालेंगे।

वह पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को

विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को दिसंबर

2023 में सर्वसम्मति से बरकरार रखा था।

न्यायमूर्ति गवई पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ में भी शामिल थे जिसने राजनीतिक चंदे

संबंधी चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द कर दिया था।

वह पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 1,000 रुपये और 500 रुपये

के नोट को चलन से बाहर करने के केंद्र के 2016 के फैसले को एक के मुकाबले चार के बहुमत से

मंजूरी दी थी।

न्यायमूर्ति गवई सात न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ में भी शामिल रहे जिसने एक के मुकाबले

छह के बहुमत से माना कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का

संवैधानिक अधिकार है ताकि उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक

एवं शैक्षणिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक पिछड़ी हैं।

न्यायमूर्ति गवई सहित सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि पक्षों के बीच बिना

‘स्टैम्प’ लगे या उचित ‘स्टैम्प’ के अभाव वाले समझौतों में मध्यस्थता उपखंड लागू होता है क्योंकि

इस प्रकार की कमी को दूर किया जा सकता है और इस खामी से करार अवैध नहीं हो जाता।

न्यायमूर्ति गवई पांच न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने जनवरी 2023 में

फैसला सुनाया था कि उच्च सार्वजनिक पदों पर आसीन अधिकारियों के भाषण एवं अभिव्यक्ति की

स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते क्योंकि उस अधिकार को

नियंत्रित करने के लिए संविधान के तहत पहले से ही व्यापक आधार मौजूद हैं।

उन्होंने ध्वस्तीकरण पर अखिल भारतीय दिशा-निर्देश निर्धारित करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला

सुनाया था कि पहले से ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं

किया जाना चाहिए और प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।

उन्होंने वन, वन्यजीव, वृक्षों की सुरक्षा से संबंधित मामलों में भी सुनवाई की और पर्यावरण की रक्षा

के लिए कई आदेश पारित किए।

न्यायमूर्ति गवई ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और हार्वर्ड विश्वविद्यालय सहित विभिन्न

विश्वविद्यालयों एवं संगठनों में विभिन्न संवैधानिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर व्याख्यान दिए हैं।

न्यायमूर्ति गवई को 14 नवंबर, 2003 को मुंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में

पदोन्नत किया गया था। वह 12 नवंबर, 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने।

वह 16 मार्च, 1985 को बार में शामिल हुए थे और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम एवं

अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील थे।

न्यायमूर्ति गवई को अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में

सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया था।

उन्हें 17 जनवरी, 2000 को नागपुर पीठ के लिए सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया था।

उनके पूर्ववर्ती न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने 16 अप्रैल को केंद्र से अगले प्रधान न्यायाधीश के रूप में

न्यायमूर्ति गवई के नाम की सिफारिश की थी।

कानून मंत्रालय ने 29 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी कर न्यायमूर्ति गवई की 52वें प्रधान

न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की घोषणा की।

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