Sunday, June 15, 2025
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बंजर पहाडियों से घिरी हरी मरूभूमि में स्थित अजमेर एक दिलचस्प अतीत का साक्षी है..

बंजर पहाडियों से घिरी हरी मरूभूमि में स्थित अजमेर एक दिलचस्प अतीत का साक्षी है। सातवीं

शताब्दी में राजा अजयपाल चैहान ने इस शहर को निर्मित किया था और ईसवी सन् 1193 तक यह

चैहान शासकों का मुख्य केन्द्र बना रहा। जब पृथ्वीराज चैहान मोहम्मद गौरी से पराजित हो गया तब

से अजमेर अनेक वंशों का घर बना रहा, जो आए और चले गए-और शहर के इतिहास में अपनी

संस्कृति व परंपरा के अमिट चिन्ह छोड़ गए जिसके कारण यह विभिन्न संस्कृतियों के सम्मिश्रण व

हिन्दुत्व व इस्लाम के मिश्रण में परिवर्तित हो गया।

आज, अजमेर हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। सूफी संत ख्वाजा

मुइनदीन चिश्ती की दरगाह शरीफ-विशेष रूप से प्रसिध्द है जो हिन्दू व मुस्लमान दोनों के लिए

आस्था का केन्द्र है। अजमेर से 11 किलोमीटर दूर भगवान ब्रह्मा का मंदिर है। इसके पश्चिम में

सुरम्य झील है। पुष्कर झील हिन्दुओं के लिए पवित्र झील है। कार्तिक (अक्तूबर-नवंबर) में महीने में

इस पवित्र झील में डुबकी लगाने के लिए हजारों भक्तजन यहां एकत्र होते हैं।

दरगाह

सभी धर्मावलम्बियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ यात्री केन्द्र दरगाह जो बंजर पहाडी के नीचे स्थित

है। यहां सूफी संत ख्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती का गौरवपूर्ण मकबरा है जो ख्वाजा साहब या ख्वाजा

शरीफ के नाम से विख्यात है। दक्षिण एशिया के मुसलमानों के लिए यह मकबरा मक्का-मदीना से

कम नहीं है। अकबर आगरा से वर्ष में एक बार दरगाह में ख्वाजा साहब के दर्शन करने आता था।

मस्जिद का विशाल द्वार है जिसे हैदराबाद के निजाम ने निर्मित करवाया था। प्रांगण में रखे दो

विशालकाय कडाहे विशेषकर दिलचस्पी की वस्तु है और प्रांगण की दायी तरफ सफेद संगमरमर से

बनी अकबरी मस्जिद है। प्रांगण में शाहजहां द्वारा निर्मित एक अन्य मस्जिद भी है। उत्कृष्ट

संगमरमरी गुम्बद से युक्त संत का मकबरा इसके प्रांगण के बीच में जो चांदी के चबूतरे से घिरा

हुआ है। रजब के इस्लाम के महीने के पहले से छठे दिन तक उर्स के दौरान संत की मनाई जाने

वाली बरसी के समय हजारों तीर्थयात्री वहां एकत्र होते हैं। इस समय जो रंग बिरंगा मेला लगता है

वह मुख्य आकर्षण का केन्द्र होता है।

शाहजहां की मस्जिद

दरगाह के भीतर चैक के कोने में सफेद संगमरमर से बनी एक शानदार इमारत जिसके लम्बे (30.5

मी.) और संकरे प्रांगण में झुके हुए तोरण और जाली द्वारा की गई परिष्कृत नक्काशी है। दरगाह के

भीतर यह सारे मन्दिरों में से सबसे अधिक उत्कृष्ट है।

अढाई-दिन-का झोपडा

खंडहर के रूप में एक उत्कृष्ट इमारत अढाई दिन के झोपडे के नाम से प्रसिद्ध है। इमारत शहर के

बाहरी हिस्से में दरगाह से थोड़ा बाहर स्थित यह भारतीय-इस्लामी वास्तुशिल्प का बेहतरीन नमूना है।

जनश्रुति के अनुसार इसे निर्मित होने में केवल अढाई दिन में इस इमारत में खेमों युक्त दालान के

सामने सात मेहराबों वाली दीबार बनाकर इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया। अलग तरह के खंभे और

ध्वस्त मीनारों के साथ अपनी मेहरावी चिलमन के कारण वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट कलाकृति लगती है।

तारागढ का किला

पहाडी पर बने, अढाई दिन का झोपडा के बाहर से आधे घंटे की खडी चढाई तारागढ किले के खंडहरों

की ओर ले जाती है। वहां से शहर को बढिया ढंग से देखा जा सकता है। मुगलकाल के दौरान किले

में सैन्य गतिविधियां होती थी, बाद में अंग्रेजों ने इसका इस्तेमाल सैनेटोरियम के रूप में किया।

संग्रहालय

एक समय अकबर का शाही निवास रहे इस संग्रहालय में मुगल व राजपूतों के कवचों व उत्कृष्ट

मूर्तियों का समृध्द भण्डार है।

सर्किट हाउस

इस पूर्व अंग्रेजी रेसीडेंसी को, आना सागर की कृत्रिम झील से अब सर्किट हाउस में परिवर्तित कर

दिया गया है। झील तथा आर्य समाज आंदोलन के संस्थापक हिन्दू सुधारक स्वामी दयानंद का

स्मारक व मंदिर यहां से देखा जा सकता है।

पुष्कर झील

11 किलोमीटर, रेगिस्तान के किनारे पर स्थित और तीन तरफ से पहाडियों से घिरी यह झील नाग

पर्वतमाला द्वारा अजमेर से पृथक हो जाती है। इस पहाड पर पांच कुण्ड व मुनि अगस्त की गुफा

स्थित है। यह माना जाता है कि इस जंगल की संपदा में कालिदास-चैथी शताब्दी के संस्कृत कवि व

नाटककार ने अपनी उत्कृष्ट कलाकृति अभिज्ञान शाकुन्तलम लिखने के लिए जगह ढूंढी थी।

आख्यानों के अनुसार पुष्कर की उत्पत्ति तब हुई थी जब भगवान ब्रह्मा यज्ञ करने निकले थे। भगवान

के हाथों से एक कमल इस घाटी में जा गिरा था। वहीं एक झील फूट पडी थी उनको समर्पित है। यहां

स्थित ब्रह्मा का मंदिर तीर्थयात्रियों का एक प्रसिद्ध स्थल है।

पुष्कर का मेला

यह भारत के सबसे रंगबिरंगे मेलों मे से एक है। वार्षिक पशु मेले में लाखों तीर्थयात्री यहां जमा होते

हैं। घोड़ों, ऊंट-गाडी की दौड व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते है। मेले में कपडे, घरेलू वस्तुएं व

चमडे का सामान भी बिकता है। कार्तिक (नवंबर) के पूरे चांद में तीर्थयात्री झील में डुबकी लगाते है।

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