नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कड़कड़डूमा कोर्ट की एक महिला जज के खिलाफ
अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने के दोषी वकील की सजा कम करने से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट
ने कहा कि वर्तमान मामला ऐसा है जहां न्याय के साथ ही अन्याय किया गया है और संस्थागत
अखंडता पर हमला किया गया है। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने सोमवार को दिल्ली की एक
अदालत के आदेश के खिलाफ वकील की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। वकील
को आईपीसी की धाराओं 186, 189, 228, 509 और 353 के तहत दोषी ठहराया गया था।
जस्टिस शर्मा ने समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव और उनके द्वारा सामना किए जाने वाले
लैंगिक दुर्व्यवहार के बारे में भी चिंता व्यक्त की। जज ने रेखांकित किया कि यह मामला न केवल
व्यक्तिगत गलती का प्रतिबिंब है, बल्कि कानूनी प्राधिकार के उच्चतम सोपानों पर महिलाओं द्वारा
सामना की जाने वाली प्रणालीगत कमजोरी का भी प्रतिबिंब है।
उन्होंने कहा जब कोई पुरुष वकील किसी महिला न्यायिक अधिकारी की गरिमा का हनन करने के
लिए अपने पद का दुरुपयोग करता है, तो यह मुद्दा किसी एक न्यायिक अधिकारी के दुर्व्यवहार का
नहीं रह जाता – यह उन संस्थाओं में भी महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली लगातार चुनौती का
प्रतिबिंब बन जाता है, जिन्हें सभी के लिए न्याय कायम रखने का दायित्व सौंपा गया है। जब कोई
महिला जो अधिकार के पद पर होती है, खासकर न्यायपालिका में, उसके साथ ऐसे कृत्य किए जाते
हैं, जो उसकी गरिमा से समझौता करते हैं, तो इससे वर्षों की प्रगति पर पानी फिर जाता है।
दिल्ली की एक अदालत ने दोषी वकील को शील भंग करने के लिए 18 महीने की सजा तथा धारा
189 और 353 के तहत तीन-तीन महीने की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट ने निर्देश दिया था कि ये
सजाएं एक के बाद एक चलेंगी, जो कुल मिलाकर दो साल के साधारण कारावास की सजा होगी।
जस्टिस शर्मा ने इस पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से लेते हुए कहा कि महिला न्यायिक अधिकारी की
मर्यादा को ठेस पहुंचाने के वकील के कृत्य ने न्यायिक मर्यादा और संस्थागत अखंडता की नींव पर
हमला किया है।
क्या है मामला
अक्टूबर 2015 में दोषी वकील ने अपने मुवक्किल के चालान मामले को अगले दिन के लिए टाले
जाने से नाराज होकर कड़कड़डूमा कोर्ट के एक कोर्ट रूम में घुसकर महिला जज को गालियां दी थीं।
इस घटना के बाद महिला जज ने पुलिस को एक लिखित शिकायत दी थी, जिसमें उन्होंने आरोप
लगाया था कि वकील ने उनका अपमान किया है और एक महिला न्यायिक अधिकारी होने के नाते
उनका शील भंग किया है और अदालत की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई है।पुलिस ने इस मामले में
वकील के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 (महिला का शील भंग करना) सहित संबंधित धाराओं के
तहत एफआईआर दर्ज की थी।

