Sunday, June 15, 2025
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सीवन : जमीन से जुड़कर ही बदलेगा समाज, मंच से नही, सेवा की असली पहचान काम में है, नाम में नहीं : युवा समाजसेवी सरदाना

इंडिया गौरव ब्यूरो राहुल ,सीवन  9 जून।आज समाज में सेवा की परिभाषा धीरे-धीरे बदलती जा रही है। जहां पहले समाजसेवा को त्याग, समर्पण और नि:स्वार्थ कर्मों से जोड़ा जाता था, वहीं आज यह मंचों तक सीमित होती जा रही है। लोग मंच पर भाषण देकर, तस्वीरें खिंचवाकर और सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर स्वयं को समाजसेवी कहलवाना पसंद करते हैं, लेकिन यह सेवा का सार नहीं है। असली समाजसेवा तब होती है जब व्यक्ति जमीन पर उतरकर लोगों की पीड़ा को समझे, उनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास करे और जरूरतमंदों के साथ खड़ा हो। यह विचार व्यक्त करते हुए युवा समाजसेवी व स्वामी ज्ञानानंद जी के परम भक्त कार्तिक सरदाना व युवा समाजसेवी भुवनेश सरदाना ने कहा कि मंच पर बोलना आसान होता है, लेकिन जरूरी है कि बोलने से पहले कुछ करके दिखाया जाए। एक रोटी किसी भूखे को देना, एक कंबल किसी ठिठुरते को ओढ़ाना, किसी अनपढ़ बच्चे को अक्षर सिखाना—ये कार्य मंच से हजार गुना ज्यादा प्रभावशाली होते हैं। आज समाज में कई बुजुर्ग उपेक्षा के शिकार हैं, अनाथ बच्चे सहारे को तरसते हैं, गरीब परिवार इलाज के बिना दम तोड़ते हैं। इन लोगों के लिए संवेदना शब्दों में नहीं, कर्मों में दिखनी चाहिए। जब तक समाजसेवा सिर्फ शब्दों तक सीमित रहेगी, तब तक समाज में वास्तविक बदलाव नहीं आ सकता।उन्होंने कहा कि कई लोग सेवा को एक अवसर की तरह देखते हैं, जहां वे मंच पर जाकर तालियां बटोर लें और अखबारों में नाम आ जाए। पर असली सेवा वह है जो गुप्त हो, नि:स्वार्थ हो और बिना प्रचार के की जाए। अगर सेवा सिर्फ कैमरे के सामने हो तो वह केवल दिखावा होती है, सेवा नहीं। समाजसेवी बनने के लिए बड़ी संस्थाएं, धन-दौलत या प्रसिद्धि की जरूरत नहीं होती। जरूरत होती है एक सच्चे दिल और सेवा भावना की। कोई किसी की स्कूल फीस भर सकता है, कोई एक समय का भोजन दे सकता है, कोई बीमार को अस्पताल तक छोड़ सकता है—यही सच्चे समाजसेवा के उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि  सेवा का लक्ष्य नाम कमाना नहीं, जीवन बदलना होना चाहिए। जो अपने कर्मों से लोगों के दिलों में जगह बनाते हैं, उन्हें किसी फोटो या अखबार की जरूरत नहीं होती। समाज को ऐसे लोगों की जरूरत है जो मंच से पहले मैदान में उतरें, भाषण से पहले सहायता करें और नाम से पहले काम पर विश्वास करें। समाजसेवा केवल आयोजनों, यात्राओं या रैलियों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। यह जीवन का हिस्सा बननी चाहिए, जहां हर इंसान दूसरों के लिए कुछ करने को तत्पर हो। यही सच्ची समाजसेवा है, यही असली मानवता है, और यही वह रास्ता है जिससे एक बेहतर समाज की कल्पना साकार हो सकती है। 

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