अब देश के सभी प्रमुख महानगरों से रेल और सड़क ही नहीं, हवाई मार्ग से भी सीधे जुड़े बनारस के
भीतर अगर आप घूमना चाहते हैं तो ऑटो या साइकिल रिक्शे से बेहतर साधन नहीं हो सकता। जिन
कारणों से भारतीय लोकमानस में काशी के नाम से प्रतिष्ठित बाबा विश्वनाथ की इस नगरी को तीनों
लोकों से न्यारी माना जाता है, उनमें यह भी एक है।
कहते हैं, अटरम-शटरम जितना कम, काशीसेवन उतना आसान। हाल में काशी गया तो स्टेशन से ही
रवींद्रपुरी केलिए ऑटो लिया। पहुंचने पर ऑटो वाले ने चालीस रुपये मांगे। पता चला कि मेरे जरिए
ही उसकी बोहनी भी होनी है और अपने पास छुट्टा नहीं था। अपनी और योगेश की सभी जेबें
तलाशने पर कुल सैंतीस रुपये निकले। बड़े संकोच के साथ उसके हाथ में रुपये रखे और पूछा कि
बाकी का क्या किया जाए?
उसका सपाट जवाब था-किया क्या जाए, संतोष किया जाए और आगे बढ़ गया। यही संतोष काशी की
मूलभूत पूंजी है और आध्यात्मिकता यहां की जीवनशैली का मूलभूत तत्व। रिक्शे वाला हो ऑटो
वाला, यहां सबका अपना अंदाज है। गलियों वाले इस शहर में हर व्यक्ति का अपना वजूद है। दिल्ली
का जाम या लालबत्ती ब्लड प्रेशर बढ़ाती है, पर काशी का जाम भी बाबा की कृपा के खाते में चला
जाता है। यहां किसी को किसी बात पर आपत्ति नहीं है।
घाटों का शहर
बाबा विश्वनाथ की इस नगरी में साल भर चहल-पहल का पूरा प्रबंध रहता है। घाटों के इस शहर की
सुबह देश भर में मशहूर है। घंटा-घड़ियाल की गूंज के बीच गंगास्नान के बाद दही-जलेबी व कचैड़ी
का स्वाद लेने का अपना अलग ही आनंद है। काशी के खाद्य पदार्थो में पान का स्थान सबसे
महत्वपूर्ण है। बनारसी पान पूरे देश में मशहूर हैं। दिल्ली में एक बार किसी ने मुझसे पूछा कि आप
काशी में रहे हैं, फिर भी पान नहीं खाते हैं?
अपना जवाब था कि आपको शायद नहीं मालूम कि गंगाजी काशी में ही उलटी बहती हैं। काशी में
गंगा दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हैं। यह शहर किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए हमेशा
तैयार रहता है। आदि शंकराचार्य से लेकर विवेकानंद तक मनीषियों की लंबी श्रृंखला को इसने आसानी
से ज्ञान का पाठ पढ़ाया है। शायद यही वजह रही होगी जो महामना मदनमोहन मालवीय ने अपने
विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए काशी को ही चुना।
इस नगरी को अपने बाबा पर गजब का भरोसा है। कहा जाता है कि काशी के कंकड़-कंकड़ में शंकर
हैं। बाबा का दरबार साल भर सजा रहता है। महाशिवरात्रि और सावन में तो पूरा माहौल ही शिवमय
हो जाता है। इस समय पंचकोसी यात्रा में भी भारी भीड़ जुटती है। पांच दिनों तक चलने वाली यह
यात्रा वस्तुतः पच्चीस कोस यानी 75 किमी की होती है। प्रतिदिन पांच कोस पैदल चलने के बाद एक
पड़ाव होता है। वैसे पांच पड़ावों वाली यह यात्रा साल भर चलती है, पर महाशिवरात्रि के दिन इसमें
भारी भीड़ जुटती है।
इसके अंतर्गत मणिकर्णिका से चल कर श्रद्धालु कर्दमेश्वर, भीमचंडी, रामेश्वर, शिवपुर और
कपिलधारा होते हुए पूरी काशी की परिक्रमा कर वापस मणिकर्णिका घाट पहुंचते हैं। काशी का मुख्य
दर्शनीय स्थल बाबा विश्वनाथ का मंदिर ही है। इसके अलावा संकटमोचन हनुमान मंदिर और दुर्गाकुंड
मंदिर का दर्शन भी आस्थावान लोग जरूर करते हैं। दुर्गाकुंड के पास ही तुलसी मानस में पौराणिक
आख्यानों से संबंधित बिजली से चालित झांकियां देखी जा सकती हैं।
बाबा भैरवनाथ
बाबा विश्वनाथ की नगरी के कोतवाल हैं बाबा भैरवनाथ। बाबा के पहले भैरवनाथ और बाद में मां
अन्नपूर्णा का दर्शन जरूरी है। भारतमाता का मंदिर भी यहीं है। घाटों के इस शहर में सुबह-शाम का
नजारा देखते ही बनता है। इन घाटों के जरिए पूरे शहर को नापा जा सकता है। घाटों के ऊपर एक
गली के जरिये भी इस छोर से उस छोर तक जाया जा सकता है। इन गलियों में आवाजाही चैबीस
घंटे चलती रहती है। देशी-विदेशी लोगों को यहां हमेशा घूमते देखा जा सकता है। शायद यही एक
ऐसा शहर है, जहां पर्यटक एक-दो दिन नहीं, बल्कि महीनों या साल भर के लिए आते हैं और कुछ
दिनों बाद ऐसी धुन में रम जाते हैं कि उनके मस्तक पर त्रिपुंड होता है और कंधों पर शिवनामी गमछा।
सारनाथ
बनारस जाएं और सारनाथ न देखें तो यात्रा अधूरी रह जाएगी। बनारस रेलवे स्टेशन से करीब 25
किमी दूर स्थित सारनाथ बौद्ध आस्था का केंद्र है। यही जगह है जहां गौतम बुद्ध ने बुद्धत्व की
उपलब्धि के बाद पहली बार उपदेश दिए थे। अब यहां बौद्ध विहार व खंडहरों के अलावा तिब्बत
विद्या शोध संस्थान और संग्रहालय भी हैं। बनारस में ठहरने के लिए आपको मुफ्त के धर्मशालों से
लेकर फाइव स्टार होटल तक सभी तरह की व्यवस्थाएं मिल जाएंगी। बड़े होटलों में होटल क्लार्क्स,
होटल क्लार्क्स टॉवर, इंटरनेशनल, होटल वाराणसी अशोक, काशिका, होटल आइडियल टॉप्स, होटल
प्रदीप, होटल इंडिया, हेरिटेज पल्लवी इंटरनेशनल इंडिया आदि प्रमुख हैं।