Monday, June 16, 2025
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Homeसैर सपाटापूरे देश से अदभूत, निराला है भारत का आखिरी गांव माणा

पूरे देश से अदभूत, निराला है भारत का आखिरी गांव माणा

पांडव इसी प्राकृतिक सौन्दर्य से पूर्ण मार्ग से होते हुए अलकापुरी गए थे।कहते हैं कि अब भी कुछ

लोग इस स्थान को स्वर्ग जाने का रास्ता मानकर चुपके से चले जाते हैं। हिमालय में बद्रीनाथ से

तीन किमी आगे समुद्र तल से 18,000 फुट की ऊंचाई पर बसा है भारत का अंतिम गांव माणा।

भारत-तिब्बत सीमा से लगे इस गांव की सांस्कृतिक विरासत तो महत्त्वपूर्ण है ही, यह अपनी अनूठी

परम्पराओं के लिए भी खासा मशहूर है। यहां रडंपा जनजाति के लोग निवास करते हैं। पहले बद्रीनाथ

से कुछ ही दूर गुप्त गंगा और अलकनंदा के संगम पर स्थित इस गांव के बारे में लोग बहुत कम

जानते थे लेकिन अब सरकार ने यहां तक पक्की सड़क बना दी है। इससे यहां पर्यटक आसानी से आ

जा सकते हैं, और इनकी संख्या भी पहले की तुलना में अब काफी बढ़ गई है। भारत की उत्तरी सीमा

पर स्थित इस गांव के आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें व्यास गुफा, गणेश गुफा, सरस्वती

मन्दिर, भीम पुल, वसुधारा आदि मुख्य हैं।

बहुत कठिन है जीवन

माणा में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। छह महीने तक यह क्षेत्र केवल बर्फ से ही ढका रहता है। यही

कारण है कि यहां कि पर्वत चोटियां बिल्कुल खड़ी और खुश्क हैं। सर्दियां शुरु होने से पहले यहां रहने

वाले ग्रामीण नीचे स्थित चमोली जिले के गांवों में अपना बसेरा करते हैं। आपको जानकर हैरत होगी

कि यहां का एकमात्र इंटर कॉलेज छह महीने माणा में और छह महीने चमोली में चलाया जाता है।

हालांकि यह पूरा क्षेत्र सालभर ठंडा रहता है लेकिन यहां की जमीन को बंजर नहीं कहा जा सकता।

अप्रैल-मई में जब यहां बर्फ पिघलती है, तब यहां की हरियाली देखने लायक होती है। यहां की मिट्टी

आलू की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। जौ और थापर (इसका आटा बनता है) भी अन्य

प्रमुख फसलों में हैं। इनके अलावा यहां भोजपत्र भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जिन पर हमारे

महापुरुषों ने अपने ग्रंथों की रचना की थी। बद्रीनाथ में तो ये बिकते भी हैं। खेत जोतने के लिए यहां

के लोग पशु-पालन भी करते हैं। पहले भेड़-बकरियां काफी संख्या में पाली जाती थीं लेकिन जाड़ों में

उन्हें निचले क्षेत्रों में ले जाने वाली परेशानी को देखते हुए उनकी संख्या काफी कम हो गई है।

मिलती हैं जड़ी-बूटियां

हिमालय क्षेत्र में मिलने वाली अचूक जड़ी-बूटियों के लिए भी माणा गांव बहुत प्रसिद्ध है। हालांकि

यहां के बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है। यहां मिलने वाली कुछ उपयोगी जड़ी-बूटियों में

बालछड़ी है जो बालों में रूसी खतम करने और उन्हें स्वस्थ रखने के काम आती है। इसके अलावा

खोया है जिसकी पत्तियों से सब्जी बना कर खाने से पेट बिल्कुल साफ हो जाता है। यहां मिलने वाली

पीपी की जड़ भी काफी प्रसिद्ध है, इसकी जड़ को पानी में उबाल कर पीने से भी पेट साफ होता है

और कब्ज की शिकायत नहीं रहती। पाखान जड़ी भी अपने आप में बहुत कारगर है, इसको नमक

और घी के साथ चाय बनाकर पीने से पथरी की समस्या कभी नहीं होती और पथरी के इलाज में भी

ये बहुत कारगर साबित होती है। चावल की शराब और गलीचे

माणा गांव की आबादी चार सौ के करीब है और यहां केवल 60 घर हैं। ज्यादातर घर दो मंजिलों पर

बने हुए हैं और इन्हें बनाने में लकड़ी का ज्यादा प्रयोग हुआ है। छत पत्थर के पटालों की बनी है।

इन घरों की खूबी ये है कि इस तरह के मकान भूकम्प के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं। इन

मकानों में ऊपर की मंजिल में घर के लोग रहते हैं जबकि नीचे पशुओं को रखा जाता है। शराब के

बाद चाय यहां के लोगों का प्रमुख पेय पदार्थ है। यहां चावल से शराब बनाई जाती है और यह घर-घर

में बनती है। बद्रीनाथ धाम के पास शराब का यह बढ़ता प्रचलन मन को झिंझोड़ता और कचोटता

जरूर है लेकिन हिमालयी क्षेत्र और जनजाति होने के कारण सरकार ने इन्हें शराब बनाने की छूट दे रखी है।

दर्शनीय स्थल

माणा गांव से लगे कई ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं। गांव से कुछ ऊपर चढ़ाई पर चढ़ें तो पहले नजर

आती है गणेश गुफा और उसके बाद व्यास गुफा। व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर

वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी और वेदों को चार भागों में बांटा था।व्यास गुफा और गणेश

गुफा यहां होने से इस पौराणिक कथा को सिद्ध करते हैं कि महाभारत और पुराणों का लेखन करते

समय व्यासजी ने बोला और गणेशजी ने लिखा था। व्यास गुफा, गणेश गुफा से बड़ी है। गुफा में

प्रवेश करते ही किसी की भी नजर एक छोटी सी शिला पर पड़ती है। इस शिला पर प्राकृत भाषा में

वेदों का अर्थ लिखा गया है।

इसके पास ही है भीमपुल। पांडव इसी मार्ग से होते हुए अलकापुरी गए थे।कहते हैं कि अब भी कुछ

लोग इस स्थान को स्वर्ग जाने का रास्ता मानकर चुपके से चले जाते हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-

साथ भीम पुल से एक रोचक लोक मान्यता भी जुड़ी हुई है।जब पांडव इस मार्ग से गुजरे थे। तब वहां

दो पहाड़ियों के बीच गहरी खाई थी, जिसे पार करना आसान नहीं था। तब कुंतीपुत्र भीम ने एक

भारी-भरकम चट्टान उठाकर फेंकी और खाई को पाटकर पुल के रूप में परिवर्तित कर दिया। बगल में

स्थानीय लोगों ने भीम का मंदिर भी बना रखा है।

वसुधारा- इसी रास्ते से आगे बढ़ें तो पांच किमी. का पैदल सफर तय कर पर्यटक पहुंचते हैं वसुधारा.

लगभग 400 फीट ऊंचाई से गिरता इस जल-प्रपात का पानी मोतियों की बौछार करता हुआ-सा प्रतीत

होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूंदें पापियों के तन पर नहीं पड़तीं। यह झरना इतना

ऊंचा है कि पर्वत के मूल से पर्वत शिखर तक पूरा प्रपात एक नजर में नहीं देखा जा सकता।

भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल का बेस

माणा में ही भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल का बेस भी है। कुछ समय पहले तक यहां के युवकों को

सुरक्षा बल में भर्ती नहीं किया जाता था, लेकिन अब इन लोगों को भी सीमा सुरक्षा बल में भर्ती

किया जा रहा है। कोऑपरेटिव सोसायटी से उन्हें हर महीने राशन मिलता है। सभी के घरों में बिजली

है और सभी को गैस कनेक्शन भी दिए गए हैं।

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