जीवन में जागृति नितांत आवश्यक है। जीव की परमगति में जागृति का विशेष महत्व है। हम कई बार सोते और जागते हैं, परंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि समय कभी नहीं सोता। अगर समय सो गया, तो हम और आप सब हमेशा के लिए सो जाएंगे। सोये रहने से मनुष्य का जीवन नहीं चल सकता। जीवन के पूर्ण लक्ष्य को पाने के लिए मनुष्य को जागना होगा। जब तक मनुष्य जीवन प्राप्त कर जगा रहता है, उसे यह दुनिया मिलती है। इस दुनिया में शरीर रूपी धाम में उस ज्योतिर्मय स्वरूप का दर्शन भी होता है। साथ ही संसार की यात्र करते हुए मनुष्य अंतमरुखी भी हो सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो व्यक्ति संसार में बसने के साथ-साथ फंस भी जाएगा। यह भोगी मन, रोगी बनकर रह जाएगा।
दुनियादारी के जंजाल में फंसता जाएगा
दुनियादारी के जंजाल में फंसता जाएगा। सूक्ष्म ध्यान से ज्यादा विकास होता है, जिससे चित्र शक्ति पूर्ण होती है और साथ ही समाधि प्राप्ति का लक्ष्य भी सहज हो जाता है। मनुष्य प्रारब्ध कर्म के भोग के लिए इस शरीर को प्राप्त करता है, किंतु यदि यह शरीर देवालय बन जाए, तो बंधनों से मुक्ति संभव है। जब तक इंद्रियों में, मन के साथ प्रकाश है, तभी तक यह देह है। स्थूल शरीर की सिद्धि के बाद ही यह पता चल पाता है कि ज्ञान-विज्ञान क्या है? जब तक आप अपनी स्थूल देह से अंतमरुखी होने का प्रयास नहीं करते हैं, तब तक अंतर्यात्र कैसे संभव होगी? इसलिए पहले अपने मन को समझाएं। अपनी कर्मेन्द्रियों से कहें कि आप केवल विकार हैं।
आप में निर्माण करने की क्षमता नहीं है
आप में निर्माण करने की क्षमता नहीं है। आप अपने से अलग किसी तत्व का निर्माण नहीं कर सकते हैं। आप किसी और की अनुपम कृति हैं, आपकी जननी कोई और है। आपको जानना होगा कि प्रकृति क्या है? इस जगत का नियंता कौन है? शरीर एक माध्यम है, अच्छे कर्मो को करने का। और ऐसा करते ही प्रकृति साथ देती है, जागृति आते देर नहीं लगती है। जरा प्रयास करके तो देखें। ऐसा प्रयास करने के बाद आपको यह महसूस होगा कि आप शरीर नहीं हैं, जो एक दिन मृत हो जाएगा। इसके बजाय आप यह अनुभव करेंगे कि मेरे अंदर चेतना का भंडार है। एक ऐसा भंडार जिसका शरीर के खत्म हो जाने के बाद भी अस्तित्व रहता है। इस सत्य को जानने के बाद आप इस संसार के समस्त कष्टों से मुक्त हो जाते हैं।

