कैथल । एनआईआईएलएम विश्वविद्यालय कैथल के अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ द्वारा स्वीकृत सीड अनुदान परियोजना धान उगाने वाले क्षेत्र में मेलॉयडोगाइन ग्रामिनिकॉला संक्रमण के लिए हॉटस्पॉट और होस्ट प्रतिरोध का मैपिंग के तहत करनाल जिले के बस्थली गांव में आज एक महत्वपूर्ण फील्ड विजिट का आयोजन किया गया। इस भ्रमण का नेतृत्व परियोजना अन्वेषक डॉ. पॉपिन कुमार एवं सह-अन्वेषक डॉ. राजीव पाल ने किया। भ्रमण के दौरान कृषि विशेषज्ञों ने स्थानीय कृषक के खेत में धान की आरंभिक अवस्था में पाई गई फसल का
निरीक्षण किया गया जिसमें रूट नॉट नेमाटोड के संक्रमण के स्पष्ट लक्षणों के आधार पर प्रभावित सीडलिंग्स के नमूने एकत्रित किए गए। डॉ. पॉपिन कुमार ने कहा कि धान की जड़ गांठ बीमारी के प्रबंधन में पोषक तत्वों का वैज्ञानिक संतुलन अत्यंत आवश्यक है। अनियंत्रित नाइट्रोजन उर्वरकों का उपयोग मिट्टी में नेमाटोड की सक्रियता को बढ़ावा देता है जिससे फसल की जड़ प्रणाली कमजोर होती है। डॉ. राजीव पाल ने परियोजना की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस शोध के माध्यम से नेमाटोड संक्रमण के संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कर, रोग-प्रतिरोधी किस्मों के चयन एवं अनुशंसाओं को स्थानीय कृषि तंत्र में समाहित किया जाएगा। यह शोध पहल क्षेत्रीय कृषि में रोग प्रबंधन की दृष्टि से एक निर्णायक कदम माना जा रहा है जिससे कृषकों को जैविक एवं पोषणीय दृष्टिकोण से सुदृढ़ समाधान प्राप्त होंगे।

