कैथल । सीपीआईएम राज्य कमेटी हरियाणा भारत के चुनाव आयोग के उस फैसले का कड़ा विरोध करती है जिसमें उसने मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन को बारह राज्यों तक बढ़ाने का फैसला किया है। राज्य सचिव कामरेड प्रेम चंद ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में कहा कि जैसा कि बिहार ने दिखाया है, इस प्रक्रिया से समाज के कमज़ोर तबके के
बहुत से लोग वोट देने से वंचित हो जाते हैं। यह बहुत चिंता की बात है कि चुनाव आयोग यह काम तब भी कर रहा है जब नागरिकता तय करने में उसके अधिकार क्षेत्र का सवाल अभी भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। संविधान में साफ तौर पर कहा गया है कि मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के लिए नागरिकता एक ज़रूरी शर्त है, लेकिन इसको तय करना चुनाव
आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। चुनाव आयोग बिहार के अनुभव से सीखने से इंकार कर रहा है। उसे यह मानना पड़ा कि सबूत के तौर पर जिन ग्यारह दस्तावेजों की उसे ज़रूरत है, उन्हें शुरू में नामांकन फार्म के साथ जमा करने की ज़रूरत नहीं है। यहां तक कि आधार, जिसे सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही जोड़ा गया था, उसे भी सिर्फ़ रहने का सबूत
माना जाता है। ऐसे दस्तावेजों पर ज़ोर देना जो आम तौर पर गरीब और कमज़ोर लोगों के पास नहीं होते, इन लोगों के बड़े हिस्सों को वोटों से दूर कर देगा। चुनाव आयोग के इनकार और बिहार में 2003 के संशोधन की गाइडलाइंस साझा करने से इनकार के बावजूद, यह साफ़ हो गया कि मौजूदा प्रक्रिया उसके अधिकारिक दावों से काफ़ी अलग है। माकपा का
मानना है कि मतदाता सूची में कोई गलती नहीं होनी चाहिए और संशोधन प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए, लेकिन एसआईआर का इस्तेमाल भाजपा के बांटने वाले हिंदुत्व एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए नागरिकता तय करने के टूल के तौर पर नहीं किया जा सकता।

