Sunday, June 15, 2025
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Homeधर्म-कर्मभगवान शिव ने क्यों किया चंद्र को मस्तक पर धारण

भगवान शिव ने क्यों किया चंद्र को मस्तक पर धारण

पौराणिक कथानुसार चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ संपन्न हुआ। चंद्र
एवं रोहिणी बहुत खूबसूरत थीं एवं चंद्र का रोहिणी पर अधिक स्नेह देख शेष कन्याओं ने अपने पिता
दक्ष से अपना दुःख प्रकट किया।

दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय
रोग से ग्रस्त हो जाओगे। शनैः-शनैः चंद्र क्षय रोग से ग्रसित होने लगे और उनकी कलाएं क्षीण होना
प्रारंभ हो गईं। नारदजी ने उन्हें मृत्युंजय भगवान आशुतोष की आराधना करने को कहा, तत्पश्चात
उन्होंने भगवान आशुतोष की आराधना की।

चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे (चंद्र की अंतिम एकधारी) कि भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को
पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्युतुल्य होते हुए भी
मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए। पुनः धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में
प्रकट हुए।

चंद्र क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्युतुल्य कष्टों को भोग रहे थे। भगवान शिव ने उस दोष का
निवारण कर उन्हें पुनःजीवन प्रदान किया अतः हमें उस शिव की आराधना करनी चाहिए जिन्होंने
मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र को मस्तक पर धारण किया था।

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