नई दिल्ली, 10 जुलाई । भारत जब एक वैश्विक शक्ति के रूप में आगे बढ़ रहा है, तब उसके साथ-साथ उसकी बौद्धिक और सांस्कृतिक गहराई भी बढ़नी चाहिए। उक्त बातें देश के
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को जेएनयू में भारतीय ज्ञान प्रणाली पर पहले वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर कही। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश की असली ताकत उसके मौलिक विचारों और सदियों पुराने मूल्यों में है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत कोई नया देश नहीं है, बल्कि यह एक सभ्यता है जो हजारों वर्षों से ज्ञान, जिज्ञासा और विचारों की एक बहती हुई धारा है। उन्होंने बताया कि आजादी के बाद भी भारत की अपनी पारंपरिक सोच को कमजोर किया गया और पश्चिमी विचारों को ‘सच की तरह सामने रखा गया। उन्होंने हल्के फुल्के अंदाज में कहा कि ईश्वर की कृपा रही तो मैं सही समय पर, अगस्त 2027 में सेवानिवृत्त हो जाऊंगा। ज्ञात हो कि धनखड़ 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में पांच साल का कार्यकाल 10 अगस्त, 2027 को समाप्त हो जाएगा।
उपराष्ट्रपति ने औपनिवेशिक सोच की आलोचना करते हुए कहा
उपराष्ट्रपति ने औपनिवेशिक सोच की आलोचना करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने भारत में सोचने वाले विद्वान नहीं, बल्कि आदेश मानने वाले कर्मचारी पैदा किए। हमने विचार करना छोड़ दिया और रटकर नंबर लाना शुरू कर दिया। इससे हमारी सोचने-समझने की ताकत कम हो गई। उन्होंने कहा कि तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालय कभी दुनिया भर के छात्रों को शिक्षा देते थे। उनकी लाइब्रेरियां हजारों पांडुलिपियों से भरी होती थीं, जो आज नष्ट हो चुकी हैं। हमें ज्ञान के सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि समाज, रीति-रिवाजों और अनुभवों में भी देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा को फिर से मजबूत करने के लिए जरूरी है कि हम पुराने ग्रंथों को डिजिटल रूप दें और उन्हें दुनिया के शोधकर्ताओं तक पहुंचाएं। उन्होंने संस्कृत, तमिल, पाली, प्राकृत जैसी भाषाओं के शास्त्रों को सहेजने और उन्हें नई पीढ़ी को पढ़ाने की बात कही। साथ ही शोध के लिए युवाओं को नई तकनीक और विधाओं से प्रशिक्षण देने की जरूरत बताई।
भारत को दुनिया का सबसे गहराई से सोचने वाला देश बताया
अपने भाषण में उन्होंने मैक्स मूलर के एक उद्धरण का जिक्र किया, जिसमें भारत को दुनिया का सबसे गहराई से सोचने वाला देश बताया गया है। उन्होंने कहा कि परंपरा और नई सोच साथ-साथ चल सकते हैं। ऋग्वेद के श्लोक आज के विज्ञान में भी काम आ सकते हैं, और चरक संहिता को आज की स्वास्थ्य नीतियों के साथ जोड़ा जा सकता है। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल, जेएनयू की कुलपति प्रो. शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने भी अपने विचार रखे।

