नई दिल्ली, 04 अगस्त (वेब वार्ता)। दिल्ली विधानसभा का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हुआ, जहां
शिक्षा बिल, भ्रष्टाचार के आरोपों और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। सत्र की शुरुआत में
ही सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने नजर आए।
सत्ता पक्ष ने शिक्षा बिल को बताया ऐतिहासिक कदम
शिक्षा बिल पेश करते हुए मंत्री पंकज सिंह ने इसे उन बच्चों के लिए लाभकारी बताया, जो अब तक
शिक्षा से वंचित रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह बिल माता-पिता को राहत देगा और शिक्षा व्यवस्था में
बड़ा बदलाव लाएगा।
मंत्री कपिल मिश्रा ने विधानसभा के पेपरलेस स्वरूप की सराहना करते हुए कहा कि, “पिछले दस वर्षों
में जो काम नहीं हुए, अब पूरे होंगे। यह विधानसभा तकनीक के नए युग में प्रवेश कर रही है।”
भाजपा विधायक हरीश खुराना ने भी इसे ऐतिहासिक क्षण बताया और कहा कि दिल्ली विधानसभा
का पहली बार पेपरलेस होना प्रशंसनीय है। उन्होंने पूर्व ‘आप’ सरकार पर तंज कसते हुए सवाल किया
कि, “यह कदम पहले क्यों नहीं उठाया गया?” उन्होंने बताया कि सत्र में सीएजी की दो रिपोर्टें पेश
होंगी, जिनमें पूर्व सरकार के कथित घोटालों जैसे निर्माण श्रमिक और भीम योजना से जुड़े मामले शामिल होंगे।
विपक्ष ने बिल में गिनाईं खामियां
वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) ने शिक्षा बिल को लेकर सरकार पर हमला बोला। विधायक कुलदीप
कुमार ने आरोप लगाया कि सरकार के आने के बाद से निजी स्कूलों की फीस बढ़ती जा रही है,
जबकि वादा फीस नियंत्रण का था। उन्होंने कहा कि यह बिल निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने की छूट
देता है, जो अभिभावकों के खिलाफ है।
विधायक अनिल झा ने शिक्षा पारदर्शिता बिल को “झूठा और दिखावटी” बताया। उन्होंने आरोप
लगाया कि सरकार एक तरफ झुग्गी-झोपड़ियों को हटा रही है, जहां से सरकारी स्कूलों में छात्र आते
हैं, और दूसरी तरफ पारदर्शिता की बात कर रही है। उन्होंने कहा कि दिल्ली की 40 प्रतिशत आबादी
झुग्गी और अनधिकृत कॉलोनियों में रहती है और यह बिल उनकी जरूरतों को नजरअंदाज करता है।
पेपरलेस विधानसभा बनी चर्चा का केंद्र
मानसून सत्र का एक बड़ा आकर्षण पूरी तरह पेपरलेस हाउस रहा। सत्र की कार्यवाही अब पूरी तरह
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर संचालित हो रही है, जिससे पारदर्शिता और कार्यकुशलता बढ़ने की उम्मीद है।

