नई दिल्ली, 19 अगस्त। इंडी गठबंधन ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व
न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना संयुक्त उम्मीदवार घोषित किया है। यह ऐलान कांग्रेस
अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर मंगलवार को गठबंधन के घटक दलों की बैठक के बाद
किया गया। रेड्डी 21 अगस्त को अपना नामांकन दाखिल करेंग।
खरगे ने रेड्डी के नाम की घोषणा की। उन्होंने कहा कि रेड्डी देश के सबसे प्रतिष्ठित और प्रगतिशील
न्यायविदों में से एक हैं। उन्होंने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में न्यायाधीश, गौहाटी हाई कोर्ट के मुख्य
न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में लंबा और उत्कृष्ट कार्य किया है। उनका कानूनी
करियर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के लिए संघर्ष से जुड़ा रहा है। बैठक में कांग्रेस,
द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (द्रमुक), तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद),
आम आदमी पार्टी (आआपा), शिवसेना (यूबीटी) सहित अन्य सहयोगी दलों के नेता मौजूद थे। सभी
दलों ने सर्वसम्मति से रेड्डी को उम्मीदवार बनाए जाने पर सहमति जताई।
खरगे ने कहा कि यह सिर्फ एक चुनाव नहीं बल्कि एक विचारधारात्मक लड़ाई है और लोकतंत्र की
रक्षा के लिए सभी विपक्षी दल एकजुट होकर मैदान में उतर रहे हैं। उन्होंने रेड्डी को संविधान और
मौलिक अधिकारों का रक्षक बताते हुए कहा कि वे गरीबों के पक्ष में कई ऐतिहासिक निर्णय दे चुके
हैं। जब भी लोकतंत्र और संविधान पर खतरा आता है, विपक्ष एकजुट होकर उसका मुकाबला करता है
और यही एकता इस चुनाव में भी दिखाई दे रही है। उन्होंने कहा कि रेड्डी का नाम सभी दलों की
सहमति से तय किया गया है और वे 21 अगस्त को नामांकन दाखिल करेंगे।इस अवसर पर कांग्रेस
नेता जयराम रमेश ने भी मीडिया को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि रेड्डी का नाम इसलिए तय
किया गया क्योंकि वे स्वतंत्रता संग्राम और संविधान के मूल्यों को जीवन भर आत्मसात करते रहे हैं।
यह चुनाव दो विचारों की टक्कर है और रेड्डी इन मूल्यों के प्रतीक हैं। उन्होंने खरगे का धन्यवाद देते
हुए कहा कि उन्होंने सभी विपक्षी दलों की ओर से देश को एक मजबूत और वैचारिक रूप से
प्रतिबद्ध विकल्प दिया है।
उल्लेखनीय है कि रेड्डी का जन्म 8 जुलाई 1946 को हुआ था। उन्होंने बीए और एलएलबी की पढ़ाई
की और 27 दिसंबर 1971 को आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत हुए।
उन्होंने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में रिट और सिविल मामलों में प्रैक्टिस की। 1988 से 1990 तक वे
सरकारी वकील रहे और छह महीने केंद्र सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील के रूप में भी कार्य
किया। उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय के लिए कानूनी सलाहकार और स्थायी वकील के रूप में भी
सेवाएं दीं। उन्हें 2 मई 1995 को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया
और 5 दिसंबर 2005 को गौहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए। इसके बाद वे
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। उनका पूरा करियर न्याय, संविधान और सामाजिक सरोकारों को
समर्पित रहा है।

