इंडिया गौरव, राहुल सीवन। सीवन के राजकीय मॉडल संस्कृति सीनियर सैकेंडरी स्कूल में संस्कृत भारती हरियाणा के तत्वावधान में आयोजित 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर का समापन समारोह गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ब्लॉक शिक्षा अधिकारी अनिल छाबड़ा और विशिष्ट अतिथि विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं राज्य पुरस्कार से सम्मानित सुदर्शन शर्मा रहे। दोनों अधिकारियों ने मंच से विद्यार्थियों को संस्कृति, संस्कार और भाषा के महत्व पर आधारित अत्यंत प्रेरक और सारगर्भित संदेश दिए, जिनमें शिक्षा के साथ-साथ चरित्र निर्माण और सांस्कृतिक बोध की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।
बीईओ अनिल छाबड़ा ने कहा
बीईओ अनिल छाबड़ा ने कहा कि वर्तमान समय में हम शिक्षा की रेस में आगे तो बढ़ रहे हैं, लेकिन जीवन मूल्यों, शिष्टाचार और संस्कारों की भावना कहीं न कहीं पीछे छूटती जा रही है। उन्होंने कहा कि ऐसी गतिविधियां विद्यार्थियों को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, अपितु व्यवहारिक जीवन के आदर्श भी सिखाती हैं। संस्कृत भाषा केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन, अनुशासन और आत्मविकास का स्रोत है। उन्होंने इस शिविर की सराहना करते हुए कहा कि यह विद्यालय शिक्षा के साथ संस्कृति की जो लौ जला रहा है, वह वास्तव में अनुकरणीय है। उन्होंने घोषणा की कि भविष्य में ऐसे शिविरों का आयोजन और अधिक योजनाबद्ध, संसाधनयुक्त और व्यापक रूप से किया जाएगा, ताकि हर विद्यार्थी को संस्कृति से जुड़ने का अवसर मिल सके।
प्रधानाचार्य सुदर्शन शर्मा ने
प्रधानाचार्य सुदर्शन शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर है, जिसे केवल कक्षा तक सीमित नहीं रखा जा सकता। उन्होंने कहा कि इस तरह के शिविर विद्यार्थियों में न केवल भाषा के प्रति रूचि जगाते हैं, बल्कि आत्मगौरव की भावना भी जाग्रत करते हैं। संस्कृत की गहराई और दिव्यता को समझकर ही हम भारत की आत्मा से साक्षात्कार कर सकते हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि इस शिविर में भाग लेने वाले छात्र भविष्य में संस्कृत के संवाहक बनकर समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का कार्य करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि विद्यालय प्रशासन भविष्य में ऐसे और अधिक नवाचारात्मक सांस्कृतिक आयोजनों को प्रोत्साहित करेगा।
डॉ. विनय गोपाल त्रिपाठी ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए
कार्यक्रम में विशेष आमंत्रित अतिथि डॉ. विनय गोपाल त्रिपाठी, जो महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय में अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं, ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए अपनी व्यक्तिगत यात्रा सांझा की। उन्होंने बताया कि उनका पारिवारिक परिवेश संस्कृत से जुड़ा नहीं था, लेकिन ऐसे शिविरों ने उन्हें प्रेरित किया और आज वह इस विद्या में उच्चतम स्तर पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल एक विषय नहीं, बल्कि जीवनदृष्टि है, जिसे आत्मसात करना आवश्यक है।
संस्था के सदस्य जय भगवान शास्त्री ने छात्रों से कहा
संस्था के सदस्य जय भगवान शास्त्री ने छात्रों से कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं, बल्कि संस्कार, संस्कृति और समाज को जोड़ने की जड़ है। उन्होंने जीवन और वृक्ष के उदाहरण से समझाया कि जो व्यक्ति अपनी संस्कृति से कटता है, उसका अस्तित्व भी धीरे-धीरे विलीन हो जाता है। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे इस भाषा को केवल विषय न माने, बल्कि अपने जीवन में उतारें।
कार्यक्रम का संचालन हिंदी प्राध्यापक बहादुर सिंह ने सौम्य और अनुशासित शैली में किया। कार्यक्रम के समापन पर संस्कृत प्राध्यापिका डॉ. ज्योति लता जिनका इस शिविर में विशेष योगदान रहा ने सभी अतिथियों, प्रतिभागी विद्यार्थियों और विद्यालय स्टाफ का आभार व्यक्त किया। अंत में संस्था की ओर से सभी अतिथियों को सप्रेम पौधों की भेंट दी गई, जो पर्यावरण संरक्षण के संदेश के साथ इस आयोजन की सुंदर परिणति थी। इस अवसर पर विद्यालय के स्टाफ सदस्य उपस्थित रहे।

