सरकार से की तत्काल राहत देने की मांग
इंडिया गौरव, राहुल सीवन। जिला कैथल के प्रख्यात समाजसेवी व अधिवक्ता गौरव वधवा ने प्रदेश सरकार की नीतियों पर कड़ा असंतोष जताते हुए कहा कि वर्तमान समय में आम जनता महंगाई और बेरोजगारी की दोहरी मार झेल रही है। सरकार की उदासीनता और जनविरोधी फैसलों ने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। उन्होंने कहा कि बिजली के लगातार बढ़ते रेटों ने मध्यमवर्गीय व गरीब परिवारों की कमर तोड़ दी है।
गौरव वधवा ने स्पष्ट रूप से मांग की
गौरव वधवा ने स्पष्ट रूप से मांग की कि सरकार को बिजली की दरों में तुरंत कटौती करनी चाहिए, ताकि आम जन को कुछ राहत मिल सके। उन्होंने कहा कि बढ़ती महंगाई के इस दौर में हर जरूरी वस्तु महंगी हो चुकी है, ऐसे में बिजली के बढ़े हुए बिल जनता पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डाल रहे हैं।उन्होंने कहा कि बेरोजगारी पहले ही चरम सीमा पर है, नौजवानों को रोजगार नहीं मिल रहा, और जो लोग काम कर भी रहे हैं, उनकी आमदनी इतनी नहीं कि वे रोजमर्रा की जरूरतें भी आसानी से पूरी कर सके।
किसानों की समस्याओं की ओर भी सरकार का ध्यान दिलाया
अधिवक्ता गौरव वधवा ने किसानों की समस्याओं की ओर भी सरकार का ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि किसान आज भी खाद, बीज और सिंचाई की समस्याओं से जूझ रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह किसानों को खाद समय पर और उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाए, ताकि फसल उत्पादन में कोई बाधा न आए।उन्होंने बीपीएल परिवारों के लिए दिए जा रहे सरसों के तेल की कीमत पर भी कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि 50 रुपए प्रति किलो की दर गरीबों के साथ अन्याय है। उन्होंने मांग की कि सरकार इस तेल की कीमत घटाकर 20 रुपए प्रति किलो करे ताकि वास्तव में गरीबों को राहत मिले।
अधिवक्ता गौरव ने कहा
उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र में सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ सत्ता चलाना नहीं, बल्कि जनता की समस्याओं को सुनना और समाधान करना होता है।उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर सरकार ने सब कुछ बेहतर कर दिया है, तो फिर जनता आज इतनी अधिक त्रस्त क्यों है?वधवा ने कहा कि चुनावों से पहले किए गए वायदे सिर्फ कागजों तक सीमित रह गए हैं, और जमीनी स्तर पर जनता को राहत देने के नाम पर कुछ भी ठोस प्रयास नहीं हो रहा।उन्होंने मांग की कि सरकार अविलंब बिजली दरें घटाए, किसानों को समय पर खाद और सुविधाएं दे, और गरीबों को मिलने वाली सब्सिडी को वाकई लाभकारी बनाए।
वधवा ने कहा
वधवा ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि जनता की आवाज को सरकार गंभीरता से सुने, नहीं तो असंतोष का विस्फोट कभी भी जन आंदोलन का रूप ले सकता है। उन्होंने कहा कि यह कोई राजनीतिक आलोचना नहीं, बल्कि आम जनता की पीड़ा है, जिसे वह लगातार जनमंचों और समाज के बीच सुनते आ रहे हैं।उन्होंने अंत में कहा कि समाज का हर जागरूक व्यक्ति आज इस स्थिति से चिंतित है और अब चुप बैठना समाधान नहीं, बल्कि संघर्ष ही एकमात्र विकल्प है।

