शरीर ही नहीं, चेतना को भी करें सशक्त – यही है स्वस्थ, समरस और संतुलित जीवन का मूलमंत्र
इंडिया गौरव, राहुल सीवन। पतंजलि योग समिति कुरुक्षेत्र के जिला प्रभारी आचार्य बलविंदर सिंह का का यह कहना है कि हमें प्रतिदिन योग करने के साथ-साथ अपनी सोच को भी सकारात्मक बनाना चाहिए। आज के दौर की सबसे सटीक और सार्थक प्रेरणा है। उनके यह शब्द केवल भाषण नहीं, बल्कि जीवन निर्माण की वह आधारशिला हैं जो हर नागरिक को आत्मबल, संतुलन और जागरूकता की ओर ले जाती है।
उन्होंने कहा कि योग कोई साधारण अभ्यास नहीं है, यह भारत की ऋषि परंपरा से उपजा वह विज्ञान है जो तन, प्राण और चेतना – तीनों को सशक्त बनाता है। नियमित योग करने से न केवल शरीर स्वस्थ रहता है, बल्कि हमारी कार्यक्षमता, सहनशक्ति और निर्णय लेने की शक्ति भी बढ़ती है। प्राणायाम और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी आंतरिक ऊर्जा को जागृत करता है, जिससे तनाव, क्रोध, चिंता जैसे भाव स्वतः नियंत्रित हो जाते हैं।
आचार्य बलविंदर ने कहा कि लेकिन केवल शारीरिक अभ्यास पर्याप्त नहीं होता। योग तभी पूर्ण होता है जब उसके साथ हमारी दृष्टि, विचार और व्यवहार भी सकारात्मक हों। नकारात्मक दृष्टिकोण जीवन की सभी संभावनाओं को ढक देता है, जबकि सकारात्मक दृष्टिकोण हर संकट में भी समाधान खोजने की प्रेरणा देता है। यह दृष्टिकोण जीवन में आशा, ऊर्जा और प्रसन्नता का संचार करता है।
आज के यांत्रिक जीवन में जहां हर दूसरा व्यक्ति तनाव, हताशा और असंतुलन से जूझ रहा है, ऐसे समय में योग और सकारात्मक चिंतन ही वह शक्ति है जो हमें भीतर से मजबूत बनाती है। यह हमें स्वयं के प्रति जागरूक बनाती है और समाज के प्रति उत्तरदायी भी।
आचार्य बलविंदर सिंह का यह विचार हर नागरिक को आह्वान करता है कि अपने शरीर की तरह अपनी चेतना की भी नियमित देखभाल करें। जब हम प्रतिदिन योग करते हैं और अपने दृष्टिकोण को उज्ज्वल और उत्साहजनक बनाते हैं, तब ही हम सच्चे अर्थों में स्वस्थ, स्वाभिमानी और समर्थ भारत की ओर बढ़ते हैं।
अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि दिन की शुरुआत एक विनम्र प्रणाम, एक सकारात्मक विचार और योगाभ्यास से करे – यही है सशक्त जीवन की दिशा और सच्चा स्वाभिमान है।

