इंडिया गौरव, राहुल सीवन। जीवन में यदि हम सच्चे संस्कारों को अपनाएं, दूसरों की निस्वार्थ सेवा करें, किसी के प्रति दिल, वचन व कर्म से बुरा न सोचें, न करें और न कहें, तो जीवन निश्चित ही सफल हो सकता है। यह विचार गंगानगर ( राजस्थान)के प्रमुख समाजसेवी रमेश गोयल व प्रमुख समाजसेवी आनंद कंसल ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि आज के युग में लोग भौतिक सुखों की रेस में भाग रहे हैं, मगर आत्मिक सुख का रास्ता सेवा, संयम और सद्विचारों से ही निकलता है। व्यक्ति को हमेशा जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए, वह भी बिना किसी स्वार्थ के। सेवा भावना में स्वार्थ का कोई स्थान नहीं होता। संस्कार ही वह नींव हैं जिन पर चरित्र की इमारत खड़ी होती है।
संयम, सेवा, और विनम्रता मनुष्य को ऊंचा उठाती है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार दीपक स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी देता है, उसी तरह हमें भी समाज के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए जो दूसरों को राह दिखाए। दूसरों की बुराई करने से दिल में नकारात्मकता बढ़ती है और आत्मिक पतन होता है।
इसके विपरीत, दूसरों की अच्छाई देखने से आत्मा निर्मल होती है और रिश्ते मधुर बनते हैं। मनुष्य को हर हाल में दूसरों के भले की सोचना चाहिए। यही भाव समाज में सौहार्द और भाईचारा बढ़ाते हैं। समाजसेवियों ने कहा कि असल धर्म वही है जिसमें किसी का दिल न दुखे। उन्होंने कहा कि किसी जरूरतमंद की मदद करना सबसे बड़ा पुण्य है।
उन्होंने युवाओं से भी आह्वान किया कि वे सोशल मीडिया पर दिखावा करने की बजाय ग्राउंड पर जाकर असली सेवा करें। सेवा का आनंद तभी मिलता है जब वह निस्वार्थ होती है। उन्होंने बताया कि आज भी कई वृद्ध, बेसहारा और जरूरतमंद लोग हमारे आसपास हैं, जिन्हें हमारी एक छोटी-सी मदद बहुत बड़ा सहारा दे सकती है।
जरूरत है तो केवल संवेदनशील बनने की। जब मनुष्य दूसरों के लिए जीना सीख लेता है, तभी उसका जीवन सार्थक होता है। संस्कार, सेवा और संयम ही जीवन की असली पूंजी हैं। इन्हीं गुणों से समाज में सद्भाव और स्थायित्व आता है। दोनों समाजसेवियों ने अंत में कहा कि हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम न किसी का बुरा करेंगे, न सोचेंगे और न ही सहन करेंगे। इसी में जीवन की सच्ची सफलता छिपी है। इस अवसर पर युवा समाजसेवी संजय गोयल व युवा समाजसेवी मोहित गोयल भी उपस्थित रहे।

