Saturday, December 6, 2025
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ताइवान चीन का हिस्‍सा, जयशंकर ने माना… चीनी विदेश मंत्री के भारत दौरे पर दुष्‍प्रचार करने सेबाज नहीं आया ड्रैगन

बीजिंग/नई दिल्‍ली, 19 अगस्त (वेब वार्ता)। चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के बीच
चीनी विदेश मंत्रालय ताइवान को लेकर दुष्‍प्रचार करने में जुट गया है। चीन के विदेश मंत्रालय ने
अपने बयान में दावा किया कि भारतीय विदेश मंत्री और चीनी विदेश मंत्री वांग के बीच मुलाकात के
दौरान जयशंकर ने कहा कि ‘ताइवान चीन का हिस्‍सा है।’ चीन जहां दावा कर रहा है कि जयशंकर

ने ‘एक चीन की नीति’ को माना और ताइवान को चीन का हिस्‍सा बताया, वहीं भारत के विदेश
मंत्रालय की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहीं नहीं कहा गया है कि ताइवान चीन का हिस्‍सा
है। भारत साल 2010 से ही संयुक्‍त बयानों में ‘एक चीन नीति’ का जिक्र करना बंद कर चुका है।
इसकी वजह एक यह भी है कि बीजिंग की ‘एक चीन नीति’ में अरुणाचल प्रदेश का भी कुछ हिस्‍सा आता है।

यही नहीं चीन का सरकारी मीडिया भी ताइवान को लेकर जयशंकर के इस झूठे बयान का जिक्र कर
रहा है। ताइवान में चीन मामलों की भारतीय विशेषज्ञ सना हाशमी कहती हैं कि यह चीन की ओर से
चलाया जा रहा एक और दुष्‍प्रचार है जो अपनी जनता और ताइवान के लोगों को ध्‍यान में रखकर

किया जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि चीन चाहता है कि भारत को ताइवान से दूर कर दिया जाए और
अमेरिका के साथ भारत के विवाद का पूरा फायदा उठाया जाए। सना हाशमी ने कहा कि जब तक
‘एक भारत की नीति’ है, दिल्‍ली ‘एक चीन नीति’ का समर्थन कर ही नहीं सकता है। भारत की

सरकार अपनी जनता के प्रति जिम्‍मेदार है।
‘भारत एक चीन नीति को नहीं मानता है’
सना हाशमी ने कहा कि भारत के बयान में कहीं भी एक चीन नीति या ताइवान का जिक्र नहीं है।
भारत ने कभी भी नहीं माना है कि ताइवान चीन का हिस्‍सा है। इसका कोई दस्‍तावेज नहीं है।

इससे पहले भारतीय व‍िदेश मंत्री जयशंकर ने सोमवार को कहा था कि भारत-चीन संबंधों में किसी
भी सकारात्मक प्रगति का आधार सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने की क्षमता पर टिका
हुआ है। उन्होंने यह भी जोर दिया कि सीमा पर तनाव कम करने की प्रक्रिया आगे बढ़नी चाहिए।
चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ हुई बैठक में जयशंकर ने कहा, ‘आप हमारे विशेष प्रतिनिधि और

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ सीमा मुद्दों पर चर्चा करेंगे। यह बेहद महत्वपूर्ण है
क्योंकि हमारे संबंधों में किसी भी सकारात्मक गति का आधार सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता
बनाए रखने की क्षमता है। साथ ही, तनाव कम करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना भी आवश्यक है।’

चीनी विदेश मंत्री वांग यी के नई दिल्ली आगमन के कुछ ही समय बाद यह बैठक हुई, जिसमें विदेश
सचिव विक्रम मिस्री और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे।
जयशंकर ने कहा कि जब दुनिया के दो सबसे बड़े देश मिलते हैं तो अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर चर्चा

होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा, “हम एक न्यायसंगत, संतुलित और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था चाहते
हैं, जिसमें बहुध्रुवीय एशिया भी शामिल हो। सुधारित बहुपक्षवाद की आज आवश्यकता है। मौजूदा
परिस्थितियों में वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिरता बनाए रखना और उसे बढ़ाना भी जरूरी है।

आतंकवाद से हर रूप में लड़ना भी एक प्रमुख प्राथमिकता है।”
जयशंकर ने चीन को दी नसीहत
उन्होंने बताया कि बैठक से दोनों देशों को द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा करने और वैश्विक स्थिति

पर विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर मिलेगा। चर्चाओं में आर्थिक और व्यापारिक मुद्दों,
तीर्थ यात्राओं, जन-से-जन संपर्क, नदी डेटा साझा करने, सीमा व्यापार, कनेक्टिविटी और द्विपक्षीय
आदान-प्रदान जैसे विषय शामिल रहेंगे। जयशंकर ने कहा, “हमारे संबंधों ने कठिन दौर देखा है। अब
हमें आगे बढ़ना है, जिसके लिए दोनों पक्षों से स्पष्ट और रचनात्मक दृष्टिकोण जरूरी है। हमें तीन

‘म्यूचुअल्स’ यानी परस्पर सम्मान, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हितों द्वारा मार्गदर्शित होना
चाहिए। मतभेद विवाद न बनें और प्रतिस्पर्धा संघर्ष में न बदलें।”
भारतीय विदेश मंत्री ने यह भी बताया कि भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की मौजूदा
अध्यक्षता के दौरान चीन के साथ निकटता से काम किया है। 31 अगस्त से 1 सितंबर को

तियानजिन में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए जयशंकर ने वांग यी को शुभकामनाएं दीं
और उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन “मजबूत नतीजों और निर्णयों” वाला होगा। जयशंकर ने कहा,
“कुल मिलाकर, हमारी यह उम्मीद है कि आज की चर्चाएं भारत और चीन के बीच स्थिर,
सहयोगात्मक और भविष्य की ओर देखने वाले रिश्तों को बनाने में योगदान देंगी, जो दोनों देशों के

हितों की पूर्ति करेंगी और हमारी चिंताओं का समाधान करेंगी।”
चीन के विदेश मंत्रालय ने और क्‍या कहा?
वहीं चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि वांग की यात्रा के माध्यम से चीन भारत
के साथ मिलकर काम करने की उम्मीद करता है, ताकि नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण आम सहमति

को अमली जामा पहनाया जा सके। इसके तहत उच्च स्तरीय आदान-प्रदान को कायम रखना,
राजनीतिक विश्वास को बढ़ाना, व्यावहारिक सहयोग को बढ़ावा, मतभेदों को उचित तरीके से निपटाया
जाना और चीन-भारत संबंधों के स्थिर विकास को बढ़ावा दिया जाना है। माओ ने सोमवार को यहां

प्रेस वार्ता में वांग की यात्रा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत-चीन सीमा मुद्दों पर विशेष
प्रतिनिधि स्तर की वार्ता दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता के लिए एक उच्च स्तरीय माध्यम है। उन्होंने
कहा कि बीजिंग में 23वें दौर की वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने परिसीमन, वार्ता, सीमा प्रबंधन तंत्र,
सीमा पार आदान-प्रदान और सहयोग पर कई आम सहमतियां हासिल कीं।

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