Saturday, December 6, 2025
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Homeधर्म-कर्मजब देवताओं ने ली हनुमानजी के बल और बुद्धि की परीक्षा

जब देवताओं ने ली हनुमानजी के बल और बुद्धि की परीक्षा

हनुमानजी को आकाश में बिना विश्राम लिये लगातार उड़ते देखकर समुद्र ने सोचा कि ये प्रभु
श्रीरामचंद्रजी का कार्य पूरा करने के लिए जा रहे हैं। किसी प्रकार थोड़ी देर के लिये विश्राम दिलाकर
इनकी थकान दूर करनी चाहिए। उसने अपने जल के भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से कहा, मैनाक!

तुम थोड़ी देर के लिये ऊपर उठकर अपनी चोटी पर हनुमानजी को बिठाकर उनकी थकान दूर करो।
समुद्र का आदेश पाकर मैनाक प्रसन्न होकर हनुमानजी को विश्राम देने के लिये तुरंत उनके पास आ
पहुंचा। उसने उनसे अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम के लिये निवेदन किया। उसकी बातें सुनकर

हनुमानजी ने कहा, मैनाक! तुम्हारा कहना ठीक है, लेकिन भगवान श्रीरामचंद्रजी का कार्य पूरा किये
बिना मेरे लिये विश्राम करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। ऐसा कहकर उन्होंने मैनाक को हाथ से
छूकर प्रणाम किया और आगे चल दिये।
हनुमानजी को लंका की ओर प्रस्थान करते देखकर देवताओं ने सोचा कि ये रावण जैसे बलवान राक्षस

की नगरी में जा रहे हैं। इनके बल बुद्धि की विशेष परीक्षा कर लेना इस समय आवश्यक है। यह
सोचकर उन्होंने नागों की माता सुरसा से कहा, देवी सुरसा! तुम हनुमान के बल बुद्धि की परीक्षा लो।
देवताओं की बात सुनकर तुरंत सुरसा एक राक्षसी का रूप धारण कर हनुमानजी के सामने जा पहुंची।

उसने उनका मार्ग रोकते हुए कहा, वानरवीर! देवताओं ने आज मुझे तुमको अपना आहार बनाने के लिये भेजा है।
उसकी बातें सुनकर हनुमानजी ने कहा, माता! इस समय मैं प्रभु श्रीरामंचद्रजी के कार्य से जा रहा हूं।
उनका कार्य पूरा करके मुझे लौट आने दो। उसके बाद मैं स्वयं ही आकर तुम्हारे मुंह में प्रविष्ट हो

जाउंगा। इस समय तुम मुझे मत रोको, यह तुमसे मेरी प्रार्थना है। इस प्रकार हनुमानजी ने सुरसा से
बहुत प्रार्थना की, लेकिन वह किसी प्रकार भी उन्हें जाने नहीं दे रही थी। अंत में हनुमान जी ने क्रुद्ध
होकर कहा, अच्छा तो लो तुम मुझे अपना आहार बनाओ। उनके ऐसा कहते ही सुरसा अपना मुंह

सोलह योजन तक फैलाकर उनकी ओर बढ़ी। हनुमानजी ने तुरंत अपना आकार उसका दूना अर्थात् 32 योजन तक बढ़ा लिया।
इस प्रकार जैसे जैसे वह अपने मुख का आकार बढ़ाती गयी, हनुमानजी अपने शरीर का आकार उसका
दूना करते गये। अंत में उसने अपना मुंह फैलाकर 100 योजन तक चैड़ा कर लिया। तब हनुमानजी

तुरंत अत्यंत छोटा रूप धारण करके उसे उस 100 योजन चैड़े मुंह में घुसकर तुरंत बाहर निकल
आये। उन्होंने आकाश में खड़े होकर सुरसा से कहा, माता! देवताओं ने तुम्हें जिस कार्य के लिए भेजा
था, वह पूरा हो गया है। अब मैं भगवान श्रीरामंचद्रजी के कार्य के लिए अपनी यात्रा पुनः आगे बढ़ाता

हूं। सुरसा ने तब उनके सामने अपने असली रूप में प्रकट होकर कहा, महावीर हनुमान! देवताओं ने
मुझे तुम्हारे बल बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए यहां भेजा था। तुम्हारे बल बुद्धि की समानता करने
वाला तीनों लोकों में कोई नहीं है। तुम शीघ्र ही भगवान श्रीरामचंद्रजी के सारे कार्य पूर्ण करोगे। इसमें
कोई संदेह नहीं है। ऐसा मेरा आशीर्वाद है।

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