Sunday, June 15, 2025
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300 करोड़ का दवाई ख़रीद घोटाला देश में मचेगा हलचल . करोड़ों रुपए के दवाई खरीद घोटाले में सरकार शपष्ट करे कि भ्रस्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत एफ. आई.आर. करने कि अनुमति दी है या नहीं, आखिरी मौका, नहीं तो होगी कड़ी कार्यवाही: हाई कोर्ट 22 अगस्त तक कार्यवाही करनी होगी । 300 करोड़ रुपए से ऊपर के दवाई खरीद घोटाले में हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आखिरी मौका देते हुए पूछा है कि सरकार शपष्ट करे कि भ्रस्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत एफ. आई.आर. करने कि अनुमति दी है या नहीं ।

करोड़ों रुपए के दवाई खरीद घोटाले में सरकार शपष्ट करे कि भ्रस्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत एफ. आई.आर. करने कि अनुमति दी है या नहीं, आखिरी मौका, नहीं तो होगी कड़ी कार्यवाही: हाई कोर्ट 

22 अगस्त तक कार्यवाही करनी होगी । 
300 करोड़ रुपए से ऊपर के दवाई खरीद घोटाले में हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आखिरी मौका देते हुए पूछा है कि सरकार शपष्ट करे कि भ्रस्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत एफ. आई.आर. करने कि अनुमति दी है या नहीं ।
पिछली सुनवाई पर भ्रस्टाचार निरोधक ब्युरो के डायरेक्टर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट से सामने हाजिर होने के आदेश दिए थे । 
याचिकर्ता जगविंदर कुल्हाड़िया ने एडवोकेट प्रदीप रापडिया के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर करके हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग में दवाइयों और उपकरणों की खरीद में करोड़ों रुपये के घपले की जांच ED से करवाने की माँग की थी! बिना ड्रग ड्रग लाइसेंस वाली कंपनियों से दवाई की खरीद लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ !
सोमवार को सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट को सूचित किया कि भ्रस्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने से पहले सरकार कि अनुमति लेनी जरूरी होती है और सरकार ने 18 मार्च, 2024 को ये अनुमति दे दी थी, लेकिन जब हाई कोर्ट के सामने ये अनुमति पेश कि गई तो कोर्ट ने पाया कि सरकार ने सिर्फ प्रारंभिक जांच कि अनुमति दी है जो शपष्ट नहीं करता कि ये अनुमति भ्रस्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत दी गई है या नहीं । कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भ्रस्टाचार निरोधक अधिनियम कि धार 17ए के तहत सरकार को एफ.आई.आर. दर्ज करके जाँच करनी है या नहीं इसका पूर्व अनुमोदन करने का समय तीन महीने का है, जो कि बहुत पहले बीत चुका है । ज्ञात रहे कि याचिकर्ता ने दिनांक 24.02.2020 को पत्र लिखकर सरकार से हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग में दवाइयों और उपकरणों की खरीद में करोड़ों रुपये के घपले की ई.डी. जांच कि मांग कि थी । 
ज्ञात रहे कि पूर्व उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने फतेहाबाद, हिसार, जींद, रेवाड़ी और रोहतक जिलों में दवाइयों और जांच उपकरणों की खरीद में 125 करोड़ रुपये की अनियमितताओं के दस्तावेज सार्वजनिक किए थे। साथ ही पूरे प्रदेश में दवा खरीद में करीब 300 करोड़ रुपये के घोटाले की आशंका जताई थी। लेकिन उपमुख्यमंत्री बनने के बाद दुष्यंत चौटाला मामले को भूल गए और कभी कार्यवाही की माँग नहीं की !
 पूर्व सीएम मनोहर लाल ने कहा था कि इस मामले की जांच होगी, जो दोषी होगा उसे छोड़ा नहीं जाएगा, लेकिन 3 साल के बाद भी आज तक एक एफ.आई.आर. तक दर्ज नहीं हुई!
याचिकर्ता जगविंदर कुल्हाड़िया ने एडवोकेट प्रदीप रापडिया के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर करके हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग में दवाइयों और उपकरणों की खरीद में करोड़ों रुपये के घपले की जांच ED से करवाने की माँग की थी! बिना ड्रग ड्रग लाइसेंस वाली कंपनियों से दवाई की खरीद लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ !
1. हिसार की एक दवा कंपनी जिस एड्रेस पर दर्ज है वहां फर्म की जगह धोबी बैठा था। 
2. हिसार व फतेहाबाद के सामान्य अस्पतालों में चिकित्सा उपकरण की सप्लाई करने वाली फर्म का मालिक नकली सिक्के बनाने के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद था, लेकिन तिहाड़ जेल में बंद व्यक्ति ने न सिर्फ टेंडर प्रक्रिया में भाग लिया बल्कि उसके स्वास्थ्य विभाग के एक व्यक्ति ने उसके झूठे हस्ताक्षर भी किये ! स्वास्थ्य विभाग का कर्मचारी ही जेल में बंद व्यक्ति के नाम से फर्म चला रहा था!
3. 16 गुना ज्यादा दाम पर खरीदे उपकरण
4. बहुत साड़ी कंपनियों के पास ड्रग लाइसेंस नहीं है। किराने की दुकान से खरीदी गई दवा! 
5. फतेहाबाद में 22 रुपये का ब्लीचिंग पाउडर 76 रुपये में खरीदा गया। 
6. फेसमास्क 4.90 रुपये में खरीदा, जबकि उसकी कीमत 95 पैसे है। 
7. 500 ग्राम कॉटन रोल जिसका टेंडर रेट 99 रुपये था, उसे 140 रुपये में खरीदा गया। 
8. हैंड सेनेटाइजर 185 रुपये के स्थान पर 325 रुपये में खरीदा गया।
9. बीपी जांचने की जो मशीन जिसकी मार्केट कीमत 780 रुपये है, 1650 रुपये में खरीदी गई,
10. एचसीवी कार्ड 10 रुपये का है मगर उसे 45 रुपये में खरीदी गया है।
11. जींद में 2 रुपये 79 पैसे की प्रेग्नेंसी जांच स्ट्रिप पहले 6 रुपये, फिर 16 और 28 रुपये में खरीदी गई।
12. जिलों के सिविल सर्जनों ने न केवल दवाइयां और उपकरण महंगे दाम पर खरीदे, बल्कि ऐसी कंपनियों से दवाइयों की खरीद कर ली, जो कागजों में किराने और घी का कारोबार करती हैं।
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